देवास (सोनकच्छ)पीपलरावा। सरकार जहां एक ओर महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए योजनाओं का ढोल पीट रही है, वहीं दूसरी ओर ठेकेदार और विभाग मिलकर उन्हीं नियमों को ताक पर रखकर शराब का कारोबार चमका रहे हैं। ताज़ा मामला है पीपलरावा का भगत सिंह चौराहा (बेरछा फाटा), जो ट्रैफिक का मुख्य केंद्र माना जाता है। यहीं पर आबादी के बीच और मुख्य सड़क किनारे शराब की दुकान खोल दी गई है, जबकि यह सीधे तौर पर नियमों के खिलाफ है।
नियम क्या कहते हैं?
आबकारी नियमों के अनुसार –
शराब की दुकानें आबादी क्षेत्र से दूर लगनी चाहिए।
मुख्य सड़कों और नेशनल हाईवे किनारे ठेका खोलना प्रतिबंधित है।
दुकान के आसपास खुले में शराब पीना वर्जित है।
लेकिन पीपलरावा में इन नियमों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। न सिर्फ दुकान आबादी और सड़क पर खोली गई है, बल्कि उसके सामने खुलेआम शराब पीने वालों की भीड़ लगती है।
महिलाओं के लिए बना डर का माहौल
घटिया, पिरपडिया, निपानिया समेत आसपास के गांवों से आने वाले यात्रियों का मुख्य स्टॉप यही चौराहा है। महिलाएं और बेटियां बस का इंतज़ार करती हैं, लेकिन उनके सामने शराबियों का जमावड़ा उन्हें असुरक्षित महसूस कराता है।
स्थानीय महिलाओं का कहना है –
“हमारे बच्चों और बेटियों के लिए यह चौराहा असुरक्षित बन चुका है। शाम होते ही शराबियों का आतंक बढ़ जाता है। हमें डर है कि कोई भी कभी भी बदतमीज़ी कर सकता है।”
ट्रैफिक पर असर, माहौल बिगड़ा
मुख्य चौराहे पर शराब दुकान होने से ट्रैफिक भी अव्यवस्थित हो गया है। शराबियों की गाड़ियाँ सड़क किनारे खड़ी रहती हैं, बाइक और बसों का तांता लगता है और पूरा माहौल बिगड़ा रहता है। यह स्थिति न सिर्फ यातायात के लिए बल्कि कानून-व्यवस्था के लिए भी खतरा है।
आबकारी विभाग की खामोशी
इस मामले पर जब संवाददाता ने आबकारी विभाग से संपर्क करना चाहा तो कई बार कोशिशों के बावजूद फोन तक रिसीव नहीं किया गया। सवाल यह उठता है कि जब आम जनता और महिलाएं खुलकर आवाज उठा रही हैं, तो आखिर विभाग किस दबाव में खामोश बैठा है?
जनता का सवाल – क्या सिर्फ कागज़ों में ही नियम?
एक तरफ सरकार लाली बहाना योजना और महिला सशक्तिकरण की योजनाओं का प्रचार कर रही है, दूसरी तरफ नियमों को तोड़कर आबादी और सड़क किनारे ठेके चलाए जा रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह ठेका तुरंत हटाकर नियमों के अनुसार बाहर, आबादी से दूर शिफ्ट किया जाए।
अब देखना यह है कि प्रशासन कब जागता है और क्या महिलाओं की सुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए ठोस कदम उठाता है, या फिर ये नियम सिर्फ कागज़ों तक ही सीमित रहेंगे।







