चरनोई भूमि और नाले-डगरियों पर अतिक्रमण से बिगड़ी स्थिति, किसानों और पशुपालकों की चिंता बढ़ी
देश के बाकी हिस्सों के साथ डिंडोरी के ग्रामीण अंचलों में आवारा गौवंश की समस्या अब गंभीर सामाजिक और प्रशासनिक चुनौती बन चुकी है। सड़क किनारे बैठे मवेशी आए दिन दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं, वहीं खेतों में घुसकर फसल चौपट करना किसानों की सबसे बड़ी परेशानी बन गया है। इस बीच क्षेत्र में यह मांग जोर पकड़ रही है कि सभी सड़कों के किनारे 20-20 फीट भूमि को गौवंश के लिए चरागाह के रूप में सुरक्षित किया जाए।
चरनोई भूमि पर कब्जे से बढ़ी समस्या
गांवों में पारंपरिक रूप से चरनोई भूमि सुरक्षित रखी जाती थी, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। अधिकांश गांवों में यह जमीन या तो कब्जे में है, या निजी उपयोग में बदल दी गई है। कई पंचायतों में मिलीभगत से पट्टे तक जारी कर दिए गए। डिंडोरी जिले के गाड़ासरई, बजाग, करंजिया और समनापुर क्षेत्र में चरनोई भूमि का संकट साफ देखा जा सकता है। ग्रामीण बताते हैं कि कभी यहां मवेशियों के लिए हरे-भरे चारागाह होते थे, आज वहाँ पक्के मकान और दुकानें खड़ी हैं।
नाले और डगरियों पर भी अतिक्रमण
सिर्फ चरनोई भूमि ही नहीं, बल्कि नाले और डगरियाँ भी अतिक्रमण की चपेट में हैं। पहले इन्हीं डगरियों से पशु तालाबों या जंगलों की ओर चरने जाते थे और नालों के किनारे प्राकृतिक रूप से चारा-पानी मिलता था। लेकिन अब नालों को पाटकर मकान बना लिए गए और डगरियों पर खेत फैला दिए गए। इसका नतीजा यह है कि अब मवेशियों के लिए न तो पारंपरिक रास्ता बचा और न ही ठिकाना। मजबूरन वे सड़कों पर उतर आते हैं।
सड़क पर भटकते गौवंश—एक बड़ी चुनौती
सड़क किनारे बैठे या अचानक दौड़कर निकलने वाले मवेशी आए दिन दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। जिला अस्पताल की रिपोर्ट बताती है कि हर साल कई लोग गौवंश से जुड़ी दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं और कई मौतें भी हो चुकी हैं। मोटरसाइकिल और कार से टकराने वाले इन हादसों में ज्यादातर युवा और किसान प्रभावित होते हैं।
किसानों की दुश्वारी
किसानों के लिए यह समस्या किसी अभिशाप से कम नहीं। उन्हें रात-रात भर खेतों की रखवाली करनी पड़ती है। कई बार फसल कटाई से ठीक पहले मवेशियों का झुंड खेत में घुसकर महीनों की मेहनत चौपट कर देता है। सीमांत और आदिवासी किसान, जिनके पास मुश्किल से कुछ बीघा जमीन है, वे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
समाधान के रूप में प्रस्ताव
ग्रामीणों ने जो मांग उठाई है, वह व्यावहारिक और सामुदायिक हित में है। प्रस्ताव है कि सड़क किनारे 20-20 फीट भूमि सुरक्षित कर इसे चरागाह के रूप में विकसित किया जाए। इस भूमि पर पौष्टिक घास और भूसा उगाया जाए। हर दो-तीन किलोमीटर पर छोटे तालाब या गड्ढे बनाकर पानी की व्यवस्था हो। बाड़बंदी कर गौवंश को सड़क और खेतों में भटकने से रोका जाए। पंचायत और पशुपालक मिलकर इसकी निगरानी करें ताकि कोई कब्जा न कर सके।
किसानों और पशुपालकों को फायदा
इस पहल से किसानों को राहत मिलेगी। फसलें सुरक्षित रहेंगी और चौकीदारी का बोझ घटेगा। पशुपालकों को भी मवेशियों को चराने की चिंता नहीं रहेगी। गौवंश को चारा-पानी का स्थायी ठिकाना मिलेगा और दुर्घटनाएँ भी कम होंगी।
पर्यावरणीय लाभ
इस योजना से सड़क किनारे हरियाली बढ़ेगी, मिट्टी का कटाव रुकेगा और पर्यावरण संतुलन सुधरेगा। ग्रामीण इलाकों का प्राकृतिक सौंदर्य भी बढ़ेगा।
प्रशासन की भूमिका
यह योजना तभी सफल होगी जब प्रशासन ठोस कदम उठाए। पंचायतों को चरनोई भूमि की पहचान कर अतिक्रमण मुक्त कराना होगा। ग्रामीण विकास और पशुपालन विभाग को मिलकर बजट आवंटित करना होगा। मनरेगा जैसी योजनाओं से तालाब, बाड़बंदी और घास विकास का काम कराया जा सकता है। जिलास्तर पर टास्क फोर्स बनाकर इस पर निगरानी रखी जा सकती है।
जन-जागरूकता की भी जरूरत
गांवों के लोग अक्सर चरनोई भूमि को “सबकी” मानकर कब्जा कर लेते हैं। यह मानसिकता बदलनी होगी। पंचायतों, सामाजिक संगठनों और युवाओं को मिलकर लोगों को समझाना होगा कि यह भूमि पूरे गांव के भविष्य के लिए है और इसे बचाना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है।
गौवंश की बदहाली, किसानों की परेशानी और सड़क दुर्घटनाओं का समाधान सड़क किनारे 20-20 फीट भूमि सुरक्षित करने की इस पहल में छिपा है। चरनोई भूमि और नालों-डगरियों पर कब्जे की समस्या ने ग्रामीण जीवन की जड़ों को हिला दिया है। यदि प्रशासन और समाज मिलकर यह कदम उठाते हैं, तो न केवल पशुओं को सुरक्षित ठिकाना मिलेगा, बल्कि किसानों की फसलें बचेंगी, सड़क हादसे कम होंगे और पर्यावरणीय संतुलन भी सुधरेगा। आज यह सिर्फ मांग नहीं, बल्कि समय की अनिवार्यता है।
समस्या
चरनोई भूमि पर अवैध कब्जे
नाले-डगरियाँ पाटकर मकान-दुकानें
सड़कों पर भटकते मवेशियों से दुर्घटनाएँ
किसानों की फसल चौपट
समाधान
सड़क किनारे 20-20 फीट भूमि को चरनोई घोषित किया जाए
घास, भूसा और पानी की व्यवस्था हो
तालाब और गड्ढे बनाकर मवेशियों को स्वच्छ पानी मिले
बाड़बंदी से सड़क और खेत सुरक्षित हों
लाभ
किसानों को राहत, फसलें सुरक्षित
दुर्घटनाओं में कमी
गौवंश को स्थायी ठिकाना
पर्यावरण और हरियाली को लाभ
प्रशासन से अपेक्षा
अतिक्रमण मुक्त अभियान
पंचायतों की जवाबदेही
मनरेगा से तालाब व बाड़बंदी
जिला स्तरीय निगरानी
चरनोई भूमि बचाना क्यों जरूरी
ग्राम्य भारत की आत्मा सदियों से पशुपालन और खेती में बसती है। लेकिन आज गांवों की तस्वीर बदल रही है। चरनोई भूमि, जो कभी सामुदायिक जीवन का केंद्र हुआ करती थी, आज अवैध कब्ज़ों की भेंट चढ़ चुकी है। नाले और डगरियाँ, जो पशुओं के प्राकृतिक मार्ग थे, अब मकानों और खेतों में समा गए हैं। नतीजा यह हुआ कि गौवंश सड़कों पर भटकने को मजबूर हैं और किसानों की फसलें सुरक्षित नहीं।
यह स्थिति केवल एक सामाजिक समस्या नहीं, बल्कि कृषि अर्थव्यवस्था और सड़क सुरक्षा से जुड़ा गंभीर सवाल है। हर साल दर्जनों लोग दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं। वहीं सीमांत किसान अपनी आधी से ज्यादा मेहनत खेत की चौकीदारी में झोंक देते हैं।
ऐसे में ग्रामीणों द्वारा सड़क किनारे 20-20 फीट भूमि सुरक्षित करने की मांग व्यावहारिक और दूरगामी सोच है। इससे न केवल पशुओं को चारा-पानी मिलेगा, बल्कि किसानों को राहत और पर्यावरण को भी लाभ होगा।
लेकिन यह तभी संभव है जब प्रशासन चरनोई भूमि और नालों-डगरियों को अतिक्रमण से मुक्त कराए और पंचायतों को जवाबदेह बनाए। सामुदायिक सहयोग और जनजागरूकता भी इसमें अहम भूमिका निभाएंगे।
गांव की सामूहिक ज़मीन पर कब्ज़े दरअसल भविष्य की पीढ़ियों से उनका अधिकार छीनना है। इसलिए वक्त आ गया है कि सरकार और समाज मिलकर इसे गंभीरता से लें और ठोस कदम उठायें।







